चित्र आधारित चौपाई रचना
चौपाई
सुंदर गौर सुकोमल अंगी,
तन पर साड़ी सिर से नंगी।
भावभंगिमा बिखरी-बिखरी,
यौवन धन है, धन से तंगी।।
उच्च माथ पर स्वेद बह रहा,
मन में उपजे भेद कह रहा।
आएगा सपनों का सावन,
मुझे मिलेंगे सुंदर साजन।।
लगा लिपस्टिक सुंदर लाली,
लाख दिलो में चुभने वाली।
हँसिया नैना रखने वाली,
काट रही गेहूँ की बाली।।
गेहूँ भी तो पट-पट जाते,
एक काटती दस कट जाते।
देख रूप वह गिर-गिर जाते,
बिन कटे ही कट-कट जाते।।
सुंदर साड़ी सुंदर नारी,
अद्भुत रूप दिखावन हारी।
देख रूप यौवन तन धारी,
नर जाता तन-मन बलिहारी।।
रूप है माया फँसा ही लेता
सतयुग कलयुग द्वापर त्रेता।
माया दीपक जीव पतंगा,
बचा वही जो सत्संग संगा।।
©दुष्यंत ‘बाबा’
मानसरोवर मुरादाबाद।
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