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10 Nov 2021 · 1 min read

चितचोर

सहमी सहमी सी किरण
चहुँ ओर है भोर
ठंड,सभी बिस्तर पड़े
पलकों में चितचोर।
पलकों में चितचोर
कहीं वह भाग ना जाए
बिस्तर पर ही रहूँ पड़ा
जब तक चाय ना आये।
चितचोरों को चाय पिलाऊँ
मधुर मधुर आनंद लिए
आज शरद ही भाया चहुँ दिशि
पलकों पर आनंद लिए।
तुम ब्रह्मांड के ऋतु-नेता हो
शुरू-शुरू में भाते हो
धीमे से आश्वासन देकर
दुपहरी में तरसाते हो।
फिर भी जय हो शरद तुम्हारी
तेरी शीतलता भाती है
झुकी हुई सी पलकें तेरी
चितचोरों को झुलसाती हैं।
-अनिल मिश्र’अनिरुध्द’,प्रकाशित

Language: Hindi
543 Views
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