चिड़िया चली गगन आंकने
पेड़ भी हँसती, पेड़ भी रोती
इन्हें भी पहुंचाता कष्ट कोई
ये भी करती नजर अंदाज..
कष्ट सहना इन्हें भी पड़ती
फिर भी रहती हसी खुशी से।
चिड़िया चली गगन को आंकने
पर कल के आस में रूकी रही
कभी ऐसा सवेरा न आया
न ही कभी ऐसी शाम आयी
जब वो नाप चुकी हो पूर्ण अंबर ।
जब जब सूरज की किरणें है आती
अंधेरो को सतत् ही दूर है भगाती
मंद मंद ढलती फिर से ये शाम
आगमन होता फिर अंधेरों का
फिर इनको मिटाने आती भानु ।
कोई भी ऐसा फलदार वृक्ष नहीं
जो दे सकती कई तरह के फल
चाहे कितनी भी कुछ भी कर ले..
वो देगी तो एक तरह की ही फल
पर इसबात को समझते क्यों न लोग ।
कवि:- अमरेश कुमार वर्मा