चिट्ठी
बीत गया अब चिट्ठी लिखने का जमाना
शब्दों की जाल का सुन्दर फसाना।
फ़ुरसत में चिट्ठी लिखा करते थे सभी,
पूरे परिवार का हाल पूछा करते थे सभी।
डाकिया को देख मन खुश हो जाता था,
कुछ पल को मन अपनों में खो जाता था।
अब तो कम हो गया डाकघर में जाना,
बीत गया अब चिट्ठी लिखने का जमाना।
अनपढ़ महिला दूसरे से चिट्ठी लिखवाती थी,
अपनी भावनाओं को न खुलकर कह पाती थी।
पति की चिट्ठी खुद नहीं पढ़ पाती थी,
पढ़ाई के लिए आजीवन पछताती थी।
चिट्ठी पढ़ने वालों का खत्म हुआ इतराना,
बीत गया अब चिट्ठी लिखने का जमाना।
नूर फातिमा खातून “नूरी” (शिक्षिका)
जिला-कुशीनगर