** चिट्ठी आज न लिखता कोई **
** गीतिका **
~~
यह विकास का क्रम तकनीकी, सब कुछ निगल रहा है।
भावों की सुन्दर कलियों को, हर पल मसल रहा है।
मोबाइल में सब खोए हैं, बातें करते करते।
चिट्ठी आज न लिखता कोई, हर पल निकल रहा है।
नहीं डाकिया दस्तक देता, दरवाजे पर देखो।
परिवर्तन का बढ़ता कितना, भारी दखल रहा है।
पत्र पेटिका में अब कोई, चिठ्ठी क्यों कर डाले।
जब किसी संदेश का मिलना, पल में सफल रहा है।
सब कुछ पीछे छूटा करता, मानव आगे बढ़ता।
भौतिक सुख सुविधा के कारण, युग भी बदल रहा है।
किन्तु पुरानी यादों का भी, है अंदाज निराला।
जब आती बहलाती मन को, व्याकुल मचल रहा है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०८/१०/२०२३