चिट्ठियाँ
*********?प्रेम भरी चिट्ठियाँ**************
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अतीत के गर्भ में खो गई मेरी प्रेम भरी चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
प्रेयसी से अतरंग प्रेम भावनाओं का एहसास थी
इन्कार, इकरार ,प्यार,तकरार भावों का वास थी
ढूंढता हूँ कहीं नहीं मिलती वो राजदार चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
रूठना,मान जाना कभी,आखों से बताना कभी
इन्तजार में थक हार के उस पर झल्लाना कभी
दीवानगी और विरानगी की प्रेम भाती चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
रंगीन लम्हों को थी समेटे चिट्ठियाँ अपने साथ में
आँखें नम हो जाती हैं जब यादें आती ख्वाब में
जड़ बना जाती हैं तन को वो खोई हुई चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
उनकी यादों का झरोखा जब मेरे मन को टीसता
रोम रोम रोए मेरा और चेहरा आँसुओं से भीगता
गागर में सागर सी थी वो अविस्मरणीय चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
भूल नहीं सकता वो लम्हा जो था प्रेम वियोग का
लुट गया सर्वस्व उस पल,जो था हमारे संयोग का
खुद दफना दी धरा में,दिल को रोंदती थी चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
अतीत के गर्भ में खो गई मेरी प्रेम भरी चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
– सुखविंद्र सिंह मनसीरत