*चिकने-चुपड़े लिए मुखौटे, छल करने को आते हैं (हिंदी गजल)*
चिकने-चुपड़े लिए मुखौटे, छल करने को आते हैं (हिंदी गजल)
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1)
चिकने-चुपड़े लिए मुखौटे, छल करने को आते हैं
रावण के वंशज अब भी यों, सिया चुरा ले जाते हैं
2)
घर के दरवाजे की कुंडी, भोलेपन में मत खोलो
सदा दशानन साधुवेश का, झंडा ही फहराते हैं
3)
लक्ष्मण-रेखा को मत लॉंघो, यही सुरक्षा-गारंटी
पार किया घर का दरवाजा, तो संकट गहराते हैं
4)
इस जग में विश्वास न करना, कभी किसी की बातों पर
ऑंख-कान जो बंद किए हैं, वह मूरख कहलाते हैं
5)
सेंध सुरक्षा में लगती है, अपनी ही कमजोरी से
लापरवाही करने वाले, भारी दुर्ग ढहाते हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451