चिकने घड़े
प्रहार पर प्रहार करते है एक दूसरे पर ,
फिर भी घायल यह होते नहीं ।
शर्मसार तो होते रहते हैं नित्य प्रति अपराधों से ,
मगर चेतन्य फिर भी होते नहीं।
कलई भी खुलती इनके घोटालों की यदाकदा ,
हजम कर जाते है सब डकार भी मारते नहीं।
उंगली उठाते है दूसरों के गुनाहों पर ,
अपना गिरेबान तो यह देखते ही नहीं।
कैसे चिकने घड़े है यह आज के नेता ,
लोक लाज से भी बिल्कुल डरते हैं।