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2 Oct 2021 · 1 min read

चाह हज़ार बाकी है…

जिंदगीभर राह देखी, जिंदगी हमनें तेरी
अब मरकर भी मौत का इंतजार बाकी है…

साथ-साथ हँसकर, ये भी भूल गए
पलकों तले आँसूओं की धार बाकी है…

कभी ना करना हिसाब, हासिल का मेरे
अभी तो लुटने के लिए तार-तार बाकी है…

अपने आशियाने की, देख मुझको खबर नहीं
तेरे बसे घर को देखने की चाह हज़ार बाकी है…

कुछ भी ना दिया जिसको, सिवाय परेशानी के
बचकर उसके कूँचे से गुज़रने की दरकार बाकी है…

ए खुदा, उसे तमाम शोहरतें नसीब हो
जिसके लिए मेरा अनकहा इज़हार बाकी है…

किसतरहाँ पूरा हो, साँसों का हिसाब
इनकी नीलामी का हर एक तलबगार बाकी है…

कोई कह दें उनसे कि हम हो गए हैं अनजान
अब ना आरज़ू, ना हसरत, ना प्यार बाकी है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

2 Likes · 2 Comments · 299 Views
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