चाह इंसानों की
हम इंसानों की चाहत
होती सिवा एक हमारी
कितना भी निस्तार मिले
फिर भी और चाहते हैं हम ।
हम इंसाने दिन-प्रतिदिन
होते जा रहे ही ए-काहिल
भव ने बहुत सी प्रसार की
इंसानों ने इस विज्ञान से ही ।
हम इंसाने तो हर हाल में
शोधते रहते सुकून सतत
आराम के चलते ही हम
अक्सर अपनाते त्रुटिपंथ ।
विज्ञान ने हम इंसानों को
दिया बहुमूल्य वरदान हमे
फिर भी हम मनुजों तो यहां
चाहते है आराम ही आराम ।