चाहना ताउम्र जो चलता रहता है
मैं तुम्हारा हाथ थामे
अब भी दूर तलक़
चल देना चाहती हूँ
अब भी देर तलक़
तुम्हारी डायरी को
पढ़ लेना चाहती हूँ
अब भी आसमान के
तारों को आज गिन
कल भुला देना चाहती हूँ
अपनी लिखी अधूरी सी
चिट्ठियों को उसी तरह
तुम्हारी डायरी में
रख देना चाहती हूँ
बड़े चाव से एक बार
अपने हाथों बने खाने
पर तारीफ़ में भरी आँखों से
मेरा माथा चूम लेना तुम्हारा
एक बार फिर
उसी तरह मेरी आत्मा को
छू लेने देना चाहती हूँ
मैं तुम्हें थका हुआ देख
पानी देकर
मुस्कुराता हुआ तुम्हारा
चेहरा देख लेना चाहती हूँ
तुम्हारे काँधे पर टांग
अपने स्कूल का बैग
गेट के बाहर तक
तुम्हें फिर से पलट कर
देख लेना चाहती हूँ
अपनी छोटी-छोटी
ख्वाहिशों को तुम्हारी
पीठ पर बैठे तुम्हें
सुनाकर उन्हें पूरा कर देने का
तुमसे वादा चाहती हूँ
फिर से वो तुम्हारा
कभी लेट हो जाना
और दरवाज़े पर बैठ
तुम्हारा इंतज़ार चाहती हूँ
मेरी सहेलियों के पिता
अब हो चले हैं बूढ़े
एक नज़र मैं भी तुम्हें
बूढ़ा होते हुए
देख लेना चाहती हूँ।
किरण वर्मा