“चाहत”
मैं तुम्हें नहीं, तुम्हारी खुशी चाहती हूं।
वक्त की बर्बादी नहीं, बेहतर जिंदगी चाहती हूं।
न तुम बुरे न तुम्हारी सोच बुरी,
बुरे हाल में भी तुम्हारी बेहतरी चाहती हूं।
नहीं बनना मुझे तुम्हारी चाहत,
तुम्हारी चाहतों में भी तुम ही चाहती हूं।
अपनी चाहत तो लिख दी मैंने,
तुम्हारी चाहतों में तब्दीली चाहती हूं।
मैं तुम्हें नहीं तुम्हारी खुशी चाहती हूं।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)