चाहत
वो छोड़ अपने चश्मे-वश्मे
उसकी महक से उसको पहचान जाती है
दूर तलक जो देखा नही करती
उसकी आहट से उसे जान जाती है
जो कभी छूपा रखी है ज़िन्दगी किताबों में
वो लड़की एक फूल देख खिलखिला जाती है
जानती है उसे तोड़ नही सकती
इसलिए रोज़ सुबह उसे पानी दे जाती है
करती है हर बसंत का इंतज़ार कि
उसे भी रंग ले ये फगुआ बयार
ताकि वो भी बन जाए
इंद्रधनुष सा यार ।
©मिन्टू/@tumharashahar