चाहत
चाहत
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मैंने जिससे प्यार किया बस ,
उसमे तुझको पाया है।
नज़र पड़ी जिस पर जा मेरी,
नज़र वहाँ तू आया है।
और कहूँ मैं क्या अब तुझसे ,
बस तेरी दिवानी हूँ।
चाहत में अब तो तेरी ही
मैं तो पानी पानी हूँ
मीत चले आओ तुम अब तो ,
नींद मुझे ना आती है।
याद तुम्हारी अब तो पल पल ,
मेरा दिल बहलाती है
खबर जमाने की ना कोई,
ना खुद की अब चिंता है
इश्क़ हुआ है तुझसे यारा,
बस अब तू ही दिखता है।
बहुत परीक्षा लेली तुमने ,
और न मुझको अजमाओ।
हृदय बीच समाकर अपने,
संग पिया जी ले जाओ।
हाथ पकड़ लो आकर मेरा,
तड़पाना अब बन्द करो।
अब तो पीर हरो आ ‘माही’,
कोई तो प्रबन्ध करो।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’
24/4/2017