* चाहतों में *
** नवगीत **
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चाहतों में गुजर गया जीवन।
जब वो आये सँवर गया जीवन।
आंसूओं को बहुत पिया मैंने,
दर्द चुपके से सह लिया मैंने।
जिन्दगी की तमाम खुशियों को,
इन्तजारों में जी लिया मैंने।
आज फूलों में खिल उठा फागुन।
स्नेह के स्वप्न ही बने संबल,
खिल गये जिस तरह कमल शतदल।
महक बिखरी सभी दिशाओं में,
घुमड़ आये ज्यों स्नेह के बादल।
फिर खनकने लगे हैं कर कंगन।
अब भला सा लगा मुझे दर्पण,
अपनी आँखोँ में एक आकर्षण।
स्नेह की देखकर छवि अनुपम,
खो गये और कर लिया विचरण।
खिल उठा फिर बसंत से कानन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य