चार लोग
मत भाग तू जमाने से ये चार
लोग बोलते हैं,
न जवाब दे बोलने दे गर चार
लोग बोलते हैं।
करोगे अच्छा भी तो सहन न
होगा इनको,
खुद खबर नहीं अपनी बोलने
को लोग बोलते हैं।
सीरत देखते नहीं सूरत पे बस
रीझते हैं,
आयी सीरत सामने तो बुरा ही
लोग बोलते हैं।
खींचते हैं सीढ़ी जरा चढ़ो तो
ऊपर की और,
नीचे खड़े हो कर वाह वाह का
झूठ लोग बोलते हैं।
सफलता किसी को किसी की
सहन नहीं होती,
ऊपर से देते बधाई मन सुलगा
के लोग बोलते हैं।
कहने दो कुछ भी दोस्तों इनको
मजबूर हैं ये तो,
तमाशा बनाना हो किसी का
तभी लोग बोलते हैं।
मांग लो साथ इनका जरा सच
की खातिर,
निकलते नहीं बाहर अंदर से
कुछ भी लोग बोलते हैं।
यकीन करना ना किसी का
मीठी बातों पर,
मुँह पर कुछ तो पीठ पीछे कुछ
और लोग बोलतें हैं।
डरते हैं बुरे लोगों से ये बोलने
वाले भी,
ज़बान खुलती है तो शरीफों
को ही लोग बोलते हैं।
करते हैं मुश्किल जीना यही तो
चार लोग,
बोलना है तो बस बे सिर पैर का
लोग बोलते हैं।
खुद को खुदा समझते हैं ये लोग
पत्थर के,
मन काले लिए मुख से राम राम
लोग बोलते हैं।
कर लो भलाई कितनी खुद भी
बिक जाओ भले,
नेकी को डुबो देते खुद को भला
लोग बोलतें हैं।
उंगलियां उठाते बिन बात के हैं
तोड़ते दिलों को,
मौत के मुँह तक ले आते हैं जब
ये लोग बोलते हैं।
लोग क्या कहेंगे इसी फिकर में
क्यों मारते ख्वाहिशें,
जो मन वो करो किसी से न डरो
बोलने दो जो लोग बोलतें हैं।
सीमा शर्मा