चार लाइन
ज़िंदगी अपनी जैसे एल ई डी टीवी स्क्रीन है
खुद तो काला मगर औरों के लिए रंगीन है ।
चैनेल कॉमेडी का यारों चेह्रे पर चला रक्खा है
कहीं किसी को ये न लगे बंदा बेहद गमगीन है ।
-अजय प्रसाद
मुहब्बत भरे ये जज़्बाती गज़ल कब तक कहोगे
कब्रे मुमताज को तुम, ताजमहल कब तक कहोगे ।
जिसने चाहा ही नहीं मुहब्बत में खुद को मिटाना
खुदगर्ज़ शाहज़हाँ को प्रेमी पागल कब तक कहोगे ।
-अजय प्रसाद
औकात आदमी की आदमी से पूछ
हालात आदमी की आदमी से पूछ ।
है किस कदर परेशां वो खुद से ही
ज़ज्बात आदमी की आदमी से पूछ ।
आदमी ने दिये क्या क्या आदमी को
सौगात आदमी की आदमी से पूछ ।
-अजय प्रसाद
गजलें मेरी बहर में बेशक़ नही है
तो क्या मुझे कहने का हक़ नही है ।
माफ़ करना अदीवों गुस्ताखियाँ
मुझे पढ़ने वाले तो अहमक नही है ।
-अजय प्रसाद