चार मुक्तक
******मुक्तक *****
*****************
चार दिन की जिन्दगानी है
यहाँ हर चीज बैगानी है
किस वहम में अहम है करे
मौत तो सभी को आनी है
*********************
सुबह से शाम भी होती हैं
कोशिशें नाकाम होती हैं
कभी हार नहीं मानना तुम
हार पश्चात जीत होती है
********************
मौसम कई रंग बदलता है
बादल बन कर बरसता है
हाथों से हाथ है छूट रहा
साथी नित ढंग बदलता है
*******************
यह दुनिया बड़ी बहुरंगी है
रिश्तों की बजती सारंगी है
सुखविंद्र मोल भाव हैं करें
जिंदगी बन रही बेढंगी हैं
********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)