*चार दिन को ही मिली है, यह गली यह घर शहर (वैराग्य गीत)*
चार दिन को ही मिली है, यह गली यह घर शहर (वैराग्य गीत)
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चार दिन को ही मिली है, यह गली यह घर शहर
1)
यह मौहल्ले और सड़कें, दृश्य बचपन से दिखा
कौन जाने किस घड़ी तक, देखना इनको लिखा
एक दिन फिर छूटना है, सृष्टि यह पूरी मगर
2)
सौ बरस में लोग कितने, मिल गए पाते रहे
लोग सब थे अजनबी पर, संग मिल गाते रहे
बज रही यह धुन अचानक, जाएगी देखो ठहर
3)
चल रही ज्यों रेलगाड़ी, दृश्य सारे छूटते
जो जुड़े संबंध गहरे, बाद दो दिन टूटते
क्या पता अब कब मिलेगी, किस जनम में फिर डगर
चार दिन को ही मिली है, यह गली यह घर शहर
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451