चार दिन का तू बादशाह
चार दिन का तून बादशाह है
पांचवां दिन तेरा आखरी होगा
जुटा ले सामान चाहे जितना
कल यह सामान किसी और का होगा !!
खाली हाथ आया था
खाली ही चला जायेगा
रास्ता पथरीला है वहां का
पता नहीं कैसे तू
पार पायेगा !!
करता रहता मेरा मेरा
क्या यहाँ है तेरा यारा
जब तेरा जिस्म अपना नहीं
फिर क्या कहता है मेरी मेरी !!
जिन्दगी की किताब का
वो पेज साफ़ कर ले
कुछ पुनः का काम कर के
अपनी इमेज साफ़ कर ले !!
रुखसत होते देर नहीं लगती
यह रिश्तेदारी जलाने में देर नहीं करती
सारे बैंक, जायदाद, पर है इनकी नजर
उस को बाँटने में, यह कतई देर नहीं करती !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ