चाय।
जब समझ ना आए कि,
कौन सी बात कही जाए,
तो फ़ुर्सत में चुपचाप बैठकर,
एक कप चाय पी जाए,
आइए साथ बैठ के,
बातें चंद की जाएं,
हाथों में लेकर चाय का प्याला,
निस्वार्थ मुहब्बत बुलंद की जाए,
इसीलिए तो मन बांवरा,
चाय के पीछे जाए,
कमबख़्त इस का रंग भी तो मेरी तरह,
साँवरा ही नज़र आए,
दिन के बाद रात,
रात के बाद फिर दिन आए,
आइऐ पूछें ज़िंदगी से,
क्या एक कप चाय हो जाए।
कवि-अंबर श्रीवास्तव