चाय
क्या तुम्हें याद है,
वो चाय वाली शाम ?
शायद नही !
पर उस शाम का
पल-पल मेरे जेहन में बसा हुआ है।
जब भी कही भी, कभी भी
चाय का प्याला होंठो से लगाता हूँ
तो याद आती है
तुम्हारी बनायी चाय
और फिर मैं प्याले को
किनारें में रख देता हूँ
और जब कोई पूछता है
तो बहाना बना देता हूँ
कि गर्म चाय
मुझसे नहीं पी जाती,
और तब याद करता हूँ
उस हसीं शाम को,
उन पलों को
जो चाय पर बिताया था
तुम्हारे संग।
चाहे वो कहीं की भी चाय हो,
तुम्हारी बनायी चाय से
फीकी ही रहती है,
तुम्हारी बनायी चाय
कोई मामूली चाय नही थी,
तुमने शक्कर के साथ-साथ
मिलाया था अपने ‘स्नेह-प्रेम’ को
जो दूसरों की बनायी चाय में
नहीं मिलती !