चाय का निमंत्रण
कोई तो बात रही होगी
जो उसने मुझे चाय पर बुलाया था
चाय पिलाना ही मकसद नहीं था उसका
ज़रूर किसी ने उसे भी रुलाया था
मैंने भी हामी भर दी उसको
हालांकि मैं चाय अब पीता नहीं था
जानता नहीं था वो, आखिरी मुलाकात के बाद
अब मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ बदल गया था
कभी दिल तोड़ा था उसने मेरा
लगता है आज उसका भी दिल टूटा था
सहारा ढूंढ रहा था वो मुझमें ही आज
माना कि कभी मुझसे उसका प्यार झूठा था
मिलकर उससे मेरा संदेह
अब यकीन में बदल गया था
दो साल पहले जो मेरे साथ उसने किया
आज, कोई उसके साथ भी कर गया था
था वो हताश, निराश, परेशान
उसका चेहरा सब बता रहा था
जाने क्यों अच्छा नहीं लग रहा था मुझे
उसकी आंखों से जब वो आंसू आ रहा था
वो चाय नहीं पिलाना चाहता था
मुझसे अपना गम बांटना चाहता था
लगी थी दिल को जो चोट उसके
बस, उसका दर्द बांटना चाहता था
मैंने भी हौसला दिया उसको
जो वो इस वक्त चाहता था
करके थोड़ी देर बातें मुझसे
उसका दिल अब हल्का हो गया था
कोई भी बुलाए चाय पर हमें
चाय के बहाने कुछ कहना चाहता है
मान जाओ ये इल्तज़ा उसकी
जो मन का बोझ हल्का करना चाहता है।