चादर
अनेक कहानियाँ सिमट जाती हैं
उन तह की गयी चादरों में
उन्हें बिखरी रहने दो….
हर सलवट में है नई कहानी,
बचपन में भाई से लड़ाई की,
मॉं से रूठ कर छिपन-छिपाई की,
रात में टॉर्च जला
कॉमिक पढ़ने की,
वो सुबह के सूरज में,
लड़कपन की अंगडाइ की,
खिड़की से आती वो ठंडी हवा की,
जाड़े में घुली धूप की,
पापा के डाँट की,
माँ की आड़ की,
बहन के दुलार की,
उस कसमसाते प्यार की,
पहले ख़त की,
पहले साथ की,
खूशबु की-ख़ुमार की,
क्यों समेटते है इन चादरों को? पूछा मैंने
जवाब आया –
चादर कहॉ- मैं तो समेट रहा हूँ,
उन यादों को, पलों को,
आशाओं को, विषमताओ को,
जो बिखरी पड़ी है,
छिपा लूँ इन्हें तह में,
बिखरे ना फिर कभी।
२९ सितंबर, २०१७