*चाटुकार*
साहब की हां में हां मिलाते,
चरण पड़े आगे गिड़गिड़ाते,
झूठ को ही सच बतलाते,
मीठी झूठी बातें बनाते,
खुद जय बोलें और बुलवाते,
समय से करते हैं निज स्वामी का प्रचार।
बनी हो चाहे कोई सरकार,
भरे पड़े हैं चाटुकार।।१।।
आकाओ का सदैव गुण गाएं,
सुबह शाम पैर दबाएं,
थप्पड़ जूते समय से खाएं,
चरण धोकर पानी पी जाए,
समय के साथ हो जाते हैं उसके,
जिसकी लम्बी मोटर कार।
बनी हो चाहे कोई सरकार,
भरे पड़े हैं चाटुकार।।२।।
काम करने का लेते ठेका,
कर लो काम अच्छा मौका,
होगा कुछ नहीं चाहें हो धोखा,
मनमर्जी राह में टोका,
जिसको चाहा उसको ठोका,
हो गया उसका अब ऐसा व्यवहार।
बनी हो चाहे कोई सरकार,
भरे पड़े हैं चाटुकार।।३।।
मुर्गा बन अजान लगाएं,
आगे पीछे पूंछ हिलाएं,
दूसरों को भी खूब सताएं,
सब कुछ करें न शर्माएं,
स्वाभिमान लुटा दिया अपना,
देखे बिना बाजार।
बनी हो चाहे कोई सरकार,
भरें पड़े हैं चाटुकार।।४।।
सजदा की भी हद को तोड़े,
बेमतलब के रिश्ते जोड़े,
अपने हिसाब से सबको मोड़े,
डींगों से दौड़ाएं घोड़े,
साहब के आगे पीछे दौड़े,
ये है दुष्यन्त कुमार का सार।
बनी हो चाहे कोई सरकार,
भरे पड़े हैं चाटुकार।।५।।