चाचा जी चाची संग हंँसते !
चाचा जी बड़े दीवाने हैं,
चाची के हुस्न निराले हैं,
कितनी नखरे वाली हैं,
मांँ की कहलाती देवरानी है ।
हंँसी ठिठोली करते सब,
चाची होती हैं घर में जब,
डांँट लगाती कभी मनाती,
गुस्से में वह भी रूठ जाती ।
चाची होती बड़ी प्यारी हैं ,
हाथ बटाए सहयोग कराए,
बहू का दर्जा निभाती है ,
सासु की होती दुलारी है ।
चाची होती घर की रौनक,
मांँ का रूप होता है जिसमें,
ख्याल रखती घर में जब सबका ,
चाचा जी चाची संग हंँसते ।
✍रचनाकार-
**बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर।