चांद बहुत रोया
रात के गले मिलकर,एक चांद बहुत रोया।
दामन अपना उसने, आंसूओं से भिगोया।
याद आती है किसी अपने की हमें रात को।
तरसता है दिल बस एक मुलाकात को।
बद्दुआ दे गया कोई, रातों को जागते रहे हम।
कितने बेबस हैं,आखिर किस से कहें हम।
हर रात भीगते हैं, आंचल और तकिया
किस से कहें हम, किसने क्या है किया।
रात की चुनरी पर,तारों का टांक रखा है।
एक सुंदर सपना मैंने तुझसे बांध रखा है।
सुरिंदर कौर