चांद निकलता है चांदनी साए को तरसती है
साए पर सजी हुई चांदनी सी रात की है,
चाँद ने आंखों में महके हुए सी बात की है!!
हर सोच और ख़्वाब यहाँ मंज़र बन जाते हैं,
दिल को भर घोर तन्हाई की यूं बात की है!!
छूती है ये ज़मीं, बस साया-ए-दिगर रहता है,
कभी ज़िंदा होता है, कभी बेखबर रहता है!!
दरिया मंजिल की हर घटा यहाँ यूँ ढलती है,
चांद निकलता है चांदनी साए को तरसती है!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”