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21 Sep 2021 · 1 min read

चाँद…

अपनी ज़वानी पर जब होता है चाँद
धवल चाँदी के जैसा चमकता है चाँद…

मेरी मुंडेर के पीछे से आता है चाँद
क्या तेरे आँगन में भी ऐसे ही उतरता है चाँद…

मैं सारी -सारी रात देखती रहती हूँ चांँद
और सारी रात मुझको देखता रहता है चांँद…

कभी-कभी बादलों में छुप जाता है चाँद
फिर निकलकर होले से मुस्कुराता है चाँद…

बढ़ता है, घटता है, हंसता है, छुपता है चाँद
मेरी खुशी और हाल से मिलता-जुलता है चाँद…

जी चाहता है छुपालूँ सबसे अपना चाँद
मगर हर आँगन को रोशन करता है चाँद…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

2 Likes · 4 Comments · 499 Views
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