अध्यात्म का अभिसार
आदि अनादि अनन्त वो, महाकाल और प्रचंड है
बहुरूपणी सर्वरूपणी, अगोचर अगम अखण्ड है
देव-दैत्य. गंधर्व-यक्ष, भगवानों का भगवान है
नाम रूप मुक्त वो,नहीं रिक्त कोई स्थान है।।
सत्य का है अर्थ जो, वही सर्वशक्ति मान है
न्याय में भी प्रेम में, शाश्वत वही तो प्राण है
जल अनल अवनि में, सुगंधि वो वायु मान है
हिम शिखर के श्रृंग में, वही तो आसमान है।।
सृष्टि का आधार जो, क्षर-अक्षर-नक्षत्र पाश है
श्वांस, आश, विश्वास वो, सत्य मात्र प्रकाश है
प्रीत की वो रीत सत्य, हृदय प्रेम प्रयाण है
मात पिता बंधु सखा, हर संबंध का प्रमाण है।।
सूर्य धरा मंदाकिनी, वही शशि तारा प्रकाश है
सृष्टि के सृजन में जो, वही तो महाविनाश है
आदि से अंत तक, वही दृग दिगंत संसार है
ज्ञान शक्ति बोध वो ही, प्रकृति का श्रृंगार है ।।
सोम रस या गरल सुधा, भक्ति का आधार है
ब्रह्म विष्णु महि परे, वो शक्ति शिव का सार है
नाद शंखनाद अनहद , वही ॐ ओंकार है
आकार वो साकार वो, परे दृष्टि निराकार है।।
रुद्र वो कृष्ण वो, कराल, कृपाल, काल है
भय औ वीभत्स वो, दीन और दयाल है
रक्त मज्जा हाड़ सज्जा, मनुज का अवतार है
संघर्ष का यदि राम वो, रावण में अंहकार है ।।
जन्म में वही मृत्यु में वही, प्रणय की पुकार है
पार्थ का भी अर्थ जो, शक्ति की ललकार है
कर्तव्य मुक्ति मोक्ष वो, वही मातृ भाव दुलार है
त्याग,तप साधना, वही अध्यात्म काअभिसार है।।