चाँद – डी के निवातिया
।। चाँद ।।
चाँद को नजर लगाता चाँद,
नूर को चमक दिखाता चाँद !!
कैसे करूँ इस पर भरोसा मैं,
झूठ को असल बताता चाँद !!
मैं भी टुकड़ा हूँ उसी जमीं का
जिस पर ऊँगली उठाता चाँद !!
जिसके दम पर खुद रोशन,
उसी पर दाग लगाता चाँद !!
पल पल में आकार बदलता,
जादू पर जादू चलाता चाँद !!
कभी रुलाता, कभी हँसाता,
ये झूठा प्यार जताता चाँद !!
दिन भर फिरता मारा मारा,
रात में दूध से नहाता चाँद !!
तारिका के आँचल में छुपकर,
तिमिर को लोरी सुनाता चाँद !!
धरम बेचारा क्या करे जब,
हुस्न से अपने लुभाता चाँद !!
स्वरचित : डी के निवातिया