‘चाँद गगन में
लुक-छिप करता चाँद गगन में,
श्वेत स्याम घन बीच।
तारावली वदन मलिन हुआ,
जलधर फेन उलीच।
पल में झलके पलमें ढलके,
चले निराली चाल।
पुरवा पवन चले मदमाती,
बजा बजाकर ताल।
तक तक बोझिल चकवा नैना,
शशि प्रेम को तरसे ।
सुनकर पुकार करुणित मन की,
शशि अमिय रस बरसे।
प्रियसी कहती छोड़ ठिठोली,
प्रिय मिलन को आते।
किस विधि नैन मिलेंगे पिय से,
झप पलक छिप जाते।
घट-बढ़ का तुम खेल खेलते,
तनिक नहीं लजाते।
कभी भरपूर रूप युवा का,
कभी शिशु बन जाते।
पूनम रूप कवि जब निरख लें,
गीत नव रच जाते।
घटते-घटते कभी-चाँद तुम,
कहीं नज़र न आते।
-गोदाम्बरी नेगी