चाँद के जब सुनाने हुए
चाँद के जब सुनाने हुए
चाँदनी के तब बहाने हुए
रोज दिन बीत जाये तभी
शाम आई अँधेरे हुए
रात को जब निशा आ गयी
जाम जैसे पियाले हुए
चाँदनी रात में जब मिले
लाज के तब छिपाने हुए
भेद मन का छिपाये नही
इसलिए अब न काले हुए
चारू किरणें चमकती रही
आपके तब सुलाने हुए
रातरानी महकने लगी
अब पवन के चलाने हुए