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19 Aug 2021 · 1 min read

चाँद के जब सुनाने हुए

चाँद के जब सुनाने हुए
चाँदनी के तब बहाने हुए

रोज दिन बीत जाये तभी
शाम आई अँधेरे हुए

रात को जब निशा आ गयी
जाम जैसे पियाले हुए

चाँदनी रात में जब मिले
लाज के तब छिपाने हुए

भेद मन का छिपाये नही
इसलिए अब न काले हुए

चारू किरणें चमकती रही
आपके तब सुलाने हुए

रातरानी महकने लगी
अब पवन के चलाने हुए

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