चाँद कुछ इस तरह से पास आया…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
चाँद कुछ इस तरह से
पास आया
कुछ तिरछी नज़र
कुछ सामने से इतराया
मैंने पूछा हाल क्या है
कुछ ना बोला, चुप रहा
हौले-हौले बस मुस्काया…
पौधे की टहनी को
छू रही उसकी किरण
चाँदनी बन, बन गई
मेरी हमसाया…
पूछा मैंने, बार-बार आती जाती,
ठहर क्यों नहीं जाती
चाँद ने चुपके से कहा
जाती हूँ, तभी तो सूरज आता है
आख़िर उससे भी तो कोई
है दिल लगाता…