चाँदनी
पूनम की वह रात सुहानी
बना शशि था तब अभिमानी
बोला मेरी चाँदनी शीतल
जब पहुँचती है यह भूतल
सारा जग है जगमग होता
मेरे होते ‘काम’ ना सोता
मैं रति का भूषण करता
कवियों का मैं आनंद कर्ता।
मैंने बोला सुन अभिमानी
तेरी बात यह मैंने मानी
सारे जग को शीतल करता
अंधकार को तू है हरता
माना कोई तेरा बैरी ना है
पर तेरी चमक ये तेरी ना है
तू चमके क्या ये चमक है तेरी
सूर्य बिना क्या बिसात है तेरी?
मानव मद मैं चूर है रहता
खुद को श्रेष्ठ खुद ही कहता
इतना भी ना बन अभिमानी
क्या पीछे तेरे? शक्ति ना जानी?