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9 Jul 2021 · 1 min read

चाँदनी ओढ़ मगन सोई चकोर…

चाँदनी ओढ़ मगन सोई चकोर
भाता न था उसे जग का शोर
चाँद से नाता जुड़ा था शाश्वत
थामी थी मन से नेह की डोर

बदरा ये गरजते कहाँ से आए
दुर्दिन से आकर चाँद पर छाए
उचट गयी नींद, हुआ जो शोर
बिखर गए सपने, हो गयी भोर

जब चाँद नज़र न आया कहीं
सुख कोई उसे फिर भाया नहीं
हुई रोते- रोते हलकान चकोर
तकती रही पूरब की ओर

ख्बाव नये मन में बुनने लगी
कान लगा पदचाप सुनने लगी
छाई थी उदासी रूह थी प्यासी
भीगी थी उसके नयन की कोर

ढली साँझ, खिली मन की कली
नव रूप भंगिमा लगी थी भली
मंद-मंद मुस्काता आया प्रियवर
खुशी का उसकी ओर न छोर

ए बदरा, गम के दूर हटो
प्रिय को जी- भर देख तो लूँ
ये रात ही बस अपनी है मेरी
भोर भये सुख चैन हरे दिन-चोर

– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Language: Hindi
1 Like · 220 Views
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