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20 Apr 2023 · 1 min read

चल रे घोड़े चल

चल रे घोड़े चल
पी लो थोड़ा जल।

जल के हैं रंग-रूप निराले
कभी मौत कभी निवाले
बहता जाता छल-छल
नाम बदलता है जल।

अगर गिरे तो झरने बनते
बह जाए तो नदियाँ
जम जाए तो बर्फ कहलाते
उड़ जाए तो बादल
जमीं में रह नमीं कहलाती
और आँखों में आँसू
श्रम से सीकर
दर्द को पीकर
है तो आखिर जल
बचा लो अपना कल।

महाप्रलय सृष्टि में आएगा जब
होगा जल ही जल,
चल रे घोड़े चल
पी लो थोड़ा जल।

– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
दुनिया के श्रेष्ठ लेखक के रूप में विश्व रिकॉर्ड में दर्ज
साहित्य और लेखन में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।

Language: Hindi
13 Likes · 6 Comments · 386 Views
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