चल उठ
चल उठ
चल उठ और ख़ुद तलाश कर ख़ुद की
अपने जीवन की राह ख़ुद कर तय
नदियों का रुख मोड़ता चल
जिधर भी तू चले राह मिलती जाए
चलता चल अकेला ही जीवन डगर में
राह अपनी ख़ुद की कर ख़ुद ही तलाश।
देख सितारों में दुनियां अपनी चमचमाती सी
बना अपना एक आसमा और एक धरती न्यारी सी
इस धरती को छोड़ चल ख़ुद कर तलाश नई धरा सी
अपनी हो ख़ुद की एक अवनी, और व्योम फैला सा
और बढ़ता चला जीवन पथ पर आगे ही आगे
एक छाप छोड़ अपनी स्वंय की न्यारी सी।
मुश्किल कहाँ नही मिलती पर तु उठ और चल
मत घबरा उनसे कभी ,वो तो मिलेगी ही राह में
फहरा जीत की पताका सबसे ऊंची ,उठ और चल
और दिखा अपनी मेहनत से सबको राह एक नई सी
और बता सभी को जहाँ चाह होती राह वहीं मिलती
बेकार तू अपने को मत मान राह नई बना तू चल उठ।
खिलखिला और बढ़ आगे पल पल नई राह पर
जीवन की कठिन राह को आसान करते हुए
दुखों को धता बता उठ तू उठ बढ़ पल पल
अपना नसीब खुद गढ़ता चल चलता चल
बढ़ता चल स्वयं ही नित नित तू चल उठ चल
हिम्मत भी साथ देगी तेरा, कमर कस और अब तू चल।
सारी दुनिया देखेगी ताकत तेरी खुदारी की
रोक ना पाएगी कोई बाधा कदमों को,तेरे अब
क्योंकि हिम्मत हमेशा आगे बढ़ाती हैं पल पल
तू पाकर हिम्मत खड़ा रह अपने हर सपने साथ लिये
करने उनको पूरा ,नही देखना तू पीछे मुड़कर
आगे बढ तू उड़कर,चलकर पल पल
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद