चल अंदर
चल अंदर
सूरज बाहर,तारे बाहर,
पवन अगन जल चंदा बाहर।
महल अटारी, नौकर चाकर,
धन और दौलत का धंधा बाहर।
बप्पा बाहर अम्मा बाहर,
नाना नानी मम्मा बाहर।
बेटी बेटा भगनी भाई,
कामी और निक्कमा बाहर।
वेद उपनिषद पोथी बाहर,
होती बातें थोथी बाहर।
पंडित और पुजारी बाहर,
कभी न होत उजारी बाहर।
मंदिर बाहर,ग्रन्थ है बाहर,
तीर्थ धाम बहु पंथ बाहर।
तन में बैठा मन का घोड़ा,
फिरता रहता जग में बाहर।
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दिल अंदर दिलदार है अंदर,
प्रीतम प्रेमी प्यार है अंदर।
परमपुरुष की सारी रचना,
साथ में रचनाकार है अंदर।
विष्णु अंदर ब्रह्मा अंदर,
शिव अंदर शिवद्वाराअंदर।
नवदुर्गा ग्रह चंद सितारे,
सकल देव परिवारा अंदर।
भक्ति अंदर शक्ति अंदर,
श्रद्धा भाव विरक्ति अंदर।
थोड़ा झाँक नयन दो ढंककर,
ईश्वर की अनुरक्ति अंदर।
हरि अंदर हरिनाम है अंदर,
अखिल खण्ड ब्रह्मांड है अंदर।
सतगुर से यदि युक्ति ले लो,
परमेश्वर का धाम है अंदर।
मधु अंदर मधुशाला अंदर,
प्रभु का परम उजाला अंदर।
दिव्यचक्षु पर ज्योति जले नित,
हरीनाम रखवाला अंदर।
घण्टा शंख बंसरी अंदर,
सतगुरु खड़ा सन्तरी अंदर।
बिन रोगन की जोती बरती,
आरति स्तुति होती अंदर।
बाहर भरम भुलावा माया,
अनहद नाद बजाया अंदर।
बाहर अब तक कोई न पाया,
जो ढूंढा सो पाया अंदर।
सतगुर अंदर साहब अंदर,
साहब का दरबारा अंदर।
जिस पर संत दया कर देवे,
वह जन होता पारा अंदर।
चल अंदर है बहुत भटक लिया,
सतगुर अलख जगाया अंदर।
अंदर से ही बाहर आया,
फिर से निज घर पाया अंदर।