चलो बढ़ाए एक साथ कदम…
हम तो नादान… हमें परख कहाँ,
लोग चलते हैं… कैसी कैसी चाल…!
बनतें होंगे अनगिनत किस्से जहाँ में,
अजीब हैं तमाशा दुनियाभर के मेलेमें…!!
होते हैं कई गुमराह करने वाले रास्ते..! और…
घायल होने वालों कि यहाँ कौन करता परवाह…!!
यहाँ अपनों का आदर करना भूले..!
अत्याचार आंतक और गुनाखोरी के होते हैं,
रोजाना कई हादसे…!
न जाने बिखरते होगें कितने आशियाने…!!
उन सबके प्रभावमें हम तो विचलित हो ऊठे,
अपनी लाचारी के वजह से विवश हो गई…!!
रोकना चाहते है, ऐ सब गुनाखोरी…पर…
इंसान में इंसानियत का गुण और मानवता,
न जाने कहां खो गई…!!
चलो… जाग्रत करते हैं मानवजाति को,
प्रयत्नों से बदल सकते हैं कई आलम और महौल,
चलो बढ़ाए एक साथ कदम….!!!