चलो अब गांवों की ओर
चलो अब गांवो की ओर
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चलो अब गांवो की ओर,
बढ़ रहा है शहरों में शोर।
प्रदूषण भी यहां बढ़ रहा,
जीना दूभर यहां हो रहा।।
चिमनियां धुआं उगल रही है,
मानवता को वे निगल रही है।
सांसों का कर रही है वे संहार,
मानव पर कर रही है वे प्रहार।
बचेगा नही यहां अब कुछ और,
चलो अब गांवो की ओर…….
आबादी शहरो में खूब बढ़ रही है,
पाव रखने की जगह न रह रही है।
भले ही यहां रोजगार मिलता है,
अपनापन यहां कहां मिलता है।
भले ही यहां सुविधाओ का शोर,
चलो अब गांवो की ओर।
प्रदूषण शहरो में रोज बढ़ रहा है,
मानव को ये जिंदा निगल रहा है।
वाहनों का यहां शोर शराबा है,
सड़कों पर यहां खून खराबा है।
भले ही यहां सुविधाओ का जोर,
चलो अब गांवों की और।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम