चलेंगे एक राह पर मिलेंगी मंजिलें कभी।
गज़ल
काफ़िया- एं
रद़ीफ-
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
भले ही हों मुसीबतें कि हम नहीं डिगें कभी।
चलेंगे एक राह पर मिलेंगी मंजिलें कभी।
कमा के अपना खायेंगे जियेंगे शान से सदा।
कभी किसी को जिंदगी में हम नहीं छलें कभी।
तुम्हारे इंतज़ार में खड़े रहेंगे हम उम्र भर,
तुम्हें न छोड़कर चले न छोड़ कर चलें कभी।
वही है राह सत्य की जो बापू ने दिखाई है,
चले उसी पे शान से चलें न दूर हम हटें कभी।
अहिंसा प्रेम सत्य का ही मार्ग एक है उचित,
कि बन के प्रेमी देश के बिना रुके चले सभी।
……..✍️ प्रेमी