* चली रे चली *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
शीर्षक
*चली रे चली *
खुशबू बिखेरती
जुल्फों को छेड़ती
अधरों पर लिए मुस्कान
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
आँखों में है कोतूहल इनके
मन में झिलमिल शंका इनके
पर फुदक रही है चाल
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
घर से निकलते के ये खुश होतीं हैं
कारण एक हों या फिर चार ।
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
पढ़ने लिखने में हैं ये सयानी
काम काज में भी हैं ये नानी
गुटर गुटर करें बात
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
पटर पटर ये स्कूटी चलायें
अभी यहाँ हैं कभी वहाँ हैं
शॉपिंग करना शौक है इनका
बारगेनिग बिन काम न चलता
कुर्ती ले लें चार
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
इनकी बातें ये ही जाने
आपस में खुस फुस और
आँख से करती हैं इशारे ।
तुरंत बदल दे चाल
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
इनसे उलझना तुम मत भैया
कर देंगी ये ता ता थैया ।
पल में आँसू पल मे काली
सूरत इनकी भोली भाली
ऊपर से गंभीर लगेंगी
टमाटर जैसी सॉफ्ट दिखेंगी
के भीतर मिर्ची लाल
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
गिटर पिटर अंग्रेजी बोलें
हिन्दी की तो टांग ही तोड़ें
आय एम सॉरी यू आर सॉरी
थैंक यू थैंक यू कर के न थकेंगी
पल में माशा पल में तमाशा
बात की पक्की कान की कच्ची
भूल न करना हैं न बच्ची
बड़े बड़ों के कान कुतरती
पहले दिन पहला शो देंखें
सजने सँवरने से ये चहके
फुदक फुदक बेहाल
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।
खुशबू बिखेरती
जुल्फों को छेड़ती
अधरों पर लिए मुस्कान
चली है नार नवेली
चली है नार नवेली ।