चलिए देखेंगे सपने समय देखकर
दिन की आशा तुम्हीं, तुम्हीं ही उल्फत ए शब
जुगनुएंँ जी रहे हैं तुम्हें देखकर।
किसके सूरत में बसता है ये चांँद और
अपनी किरदार बोलो जरा सोचकर।
बन के होंठों की मुस्कान गाता रहूंँ
प्रेम का गीत मैं प्रेम को ओढ़कर।
आप स्वागत करो मन के मंदिर में हम
एक दिन आही जाएंँगे सब छोड़कर।
आपके नाम पहला मुहब्बत का खत
जिसमें मैं रख रहा अपना दिल मोड़कर ।
उलझनें ज़िंदगी का नया धूप है
जबकि छाया मिलेगा जतन जोड़कर।
हुस्न की रंगतें आपकी कम नहीं..
और उच्छल है मन प्रेम को घोलकर।
आपसे मिलना है सिलसिला जीत का….
जीत जाऊंगा मैं आपसे हारकर।
कुछ रिवायत है अच्छी जहांँ के लिए
जो रिवायत बुरी है उसे तोड़कर।
प्रेम आंँचल है जीवन है जिसकी वसन।
चलिए देखेंगे सपने समय देखकर।
दीपक झा रुद्रा