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18 Mar 2020 · 1 min read

चला था जब मैं

चला था जब मैं साथ मेरी परछाई भी थी
भीड़ के दामन में दुबकी तनहाई भी थी

किसी के घर में मातम था सन्नाटा था
वहीँ किसी के घर गूंजी शहनाई भी थी

बेटी से माँ बाप का रिश्ता रब जाने
जो कल तक थी अपनी वही पराई भी थी

छोड़ मेरा घर और कहाँ जाती चिड़ियाँ
मेरे घर में पेड़ भी था अँगनाई भी थी

दुश्मन दोस्त हैं दोनों एक ही चेहरे में
जिसने बुझाई आग उसी ने लगाई भी थी

शहर का मौसम आज है कुछ बदला-बदला
शायद पछुवा संग चली पुरवाई भी थी

झूठ बोल कर बना मसीहा जब संजय
गुमसुम-गुमसुम वहीँ खड़ी सच्चाई भी थी

1 Like · 408 Views
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