प्रस्फुटन
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* प्रस्फुटन *
*यूँ तो हर बीज को
माकूल माहोल नहीं मिलता
मिल जाता अगर
जल और धरा
का साथ तो
आकार नहीं मिलता
किस्मत – किस्मत है
अपनी जनाब
कभी माँ का कभी बाप
का प्यार नहीं मिलता
मैंने देखा है जिंदगी को
बेहद करीब से
कहने को आदमी हैं
लेकिन सबको अपने
मन का यार नहीं मिलता
कभी इस से कभी उससे
कोशिश रहती है
दिल लगाने की
लेकिन सकारात्मक
विचार नहीं मिलता
ता उम्र ढूंढते हैं
अपने विचार ,
आचरण और आदतें
बदन से बदन
बहुत मिलता है
मगर संस्कार नहीं मिलता
खोज जारी है
तेरी भी और मेरी भी
भक्त बहुत मिलते हैं
मगर भगवान नहीं मिलता
यूँ तो हर बीज को
माकूल माहोल नहीं मिलता
मिल जाता अगर
जल और धरा
का साथ तो
आकार नहीं मिलता*