चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
टपकती छत सतत मेरी, छवाऊँ अब कहाँ छाजन ?
दुलारा है तुम्हारा ये, मगर मुझको सताता है,
कहो भोले मुझे ही क्यों, बनाया कोप का भाजन ?
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
टपकती छत सतत मेरी, छवाऊँ अब कहाँ छाजन ?
दुलारा है तुम्हारा ये, मगर मुझको सताता है,
कहो भोले मुझे ही क्यों, बनाया कोप का भाजन ?
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद