*** ” चलना है मगर… संभल कर….!!! ” ***
*** चल उठ जीवन पथ के राही ,
कुछ कदम बढ़ा ;
भोर हो चला है कर ले कुछ हलचल ।
उदित किरण की लाली (रवि किरण ) संग ,
बहती शीतल बयार संग ,
आ कर कुछ नई पहल ।
ओ राही चल , मगर आहिस्ता आहिस्ता चल ;
राहों पर कोई भटकाव न हो ,
चल कुछ थम के चल ।
राहों पर अपनी नज़रें टीका के चल ,
मोड़ हो राहों में.. कोई बात नहीं ,
तंग हो कोई ग़म न कर ;
लेकिन..कदम अपनी फिसले न ,
ऐसी कोई कोशिश न कर ।
*** राहें दुर्गम हों , पथ चाहे अगम हों ;
उसे सुगम करता चल ।
राहों में कुछ मुसिबतें आयेंगे ,
तूझे कुछ भरमायेंगें ;
उसे सरलता से हल करता चल ।
आज और कल की बात न कर ,
हो सके तो अभी चलने की , कुछ कर पहल ।
चाल में तेरी , मौजों की रवानी हो ;
बढ़ते कदमों की पांवों में ,
हौसले की कोई निशानी हो ।
रमता चल या फिर बहता चल , ओ राही….! ;
मगर तू थोड़ा संयम से ,
संभल के चलता चल ।
*** पवन की चाल में कहीं बहक न जाना ,
फूलों की महक में कहीं बिखर न जाना ;
घटाओं की बारिश में तुम भिग जाना ,
मगर राहों पर फिसलने की कोशिश न करना ।
हो सके राह में कहीं दुर्गम पहाड़ी मिलेंगे ,
अदम्य हौसला साथ ले कर चल ।
टेढ़े-मेढ़े या ऊंचे-नीचे कुछ ढाल मिलेंगे ,
शक्त पांवों के निशान गढ़ता चल ।
फूलों की पथ में ,
अनचाहे कांटों के कुछ जाल भी मिलेंगे ;
मगर तू ज़रा सतर्क हो कर चल ।
ये तुम्हारी कदमों के चाप ,
है ये तुम्हारी आकृति के अद्वितीय छाप ।
होगा ये एक अनमोल निशान ,
तेरे कोई अनुगामी के लिए ।
तू चल अथक ,
तू बन प्रतीक एक हम राही के लिए ।
आज और कल की तू बात न कर ,
हो सके तो अभी चल ।
एक-एक कदम चल , कुछ थम के चल ,
मगर तू संभल कर चल ।
एक-एक कदम चल , कुछ थम के चल ,
मगर तू ज़रा संभल कर चल ।।
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बी पी पटेल
बिलासपुर (छ.ग.)
०२ / ०६ / २०२१