चलते चलते कहाँ पहुँच गया
चलते चलते कहाँ पहुँच गया,
क्या सोचा था, क्या हो गया,
खोजते खोजते सागर सुख का,
मिल गया देखो दरिया दुख का ,
बढ़ी जो सुख की यह लालसा,
दिखा दिया रास्ता काल सा,
चलते चलते कहाँ पहुँच गया ,
क्या सोचा था, क्या हो गया ,
लोभ मोह माया के दानव ,
बन गया स्वयं यह मानव,
सुंदर राह देख ,चला बिना सोचे,
अब तू क्यों जग को कोसे ,
चलते चलते कहाँ पहुँच गया ,
क्या सोचा था, क्या हो गया ,
प्रकृति से जो खेला खेल,
अब मुसीबतों को झेल,
किसको सुना रहा यह रोना ,
सर पर खड़ा अब कोरोना ,
चलते चलते कहाँ पहुँच गया ,
क्या सोचा था ,क्या हो गया ,
समय निकला नहीं अभी ,
सोच ले होगी ना भौर कभी ,
प्रेम स्नेह से सबको जीने दे,
स्वतंत्रता का अमृत पीने दे,
चलते चलते कहाँ पहुँच गया ,
क्या सोचा था, क्या हो गया,
।।।जेपीएल।।।