चरित्र निर्माण (कविता)
किसी भी परिवार में जब होते हैं छोटे बच्चे
उस समय उनके मस्तिष्क होते बिल्कुल कच्चे
माता-पिता जैसी शिक्षा और संस्कार सिखाएंगे
वे उसी राह पर अग्रसर होते हुए कदम बढ़ाएंगे
अगर बाल्यकाल में उन्हें हर अच्छे-बुरे,
सही-गलत को पहचानने का कराया जाए ज्ञान
वे जीवन भर प्रेरणा रूपी दीपक बन हो प्रकाशवान
सर्वप्रथम हमारे देश में माता पिता फिर गुरु
तत्पश्चात दिया गया है देवताओं को स्थान,
जहाँ बच्चे माता पिता से ही सीखते हैं
गुरुओं तथा देवताओं का करना सम्मान
परिवार में बच्चे को संस्कारित करने में सदैव ही
बुजुर्गों एवं माता पिता का होता बहुत बड़ा हाथ
वर्तमान में आनेवाली पीढ़ी को कराये अमूल्य पहचान
मानव चरित्र- निर्माण हेतु सदैव नैतिक शिक्षा ही साथ